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कविता

मास्क वाले चेहरे

अखिलेश्वर पांडेय


मैं अक्सर निकल जाता हूँ भीड़भाड़ गलियों से
रोशनी से जगमग दुकानें मुझे परेशान करती हैं
मुझे परेशान करती है उन लोगों की बकबक
जो बोलना नहीं जानते

मै भीड़ नहीं बनना चाहता बाजार की
मैं ग्लैमर का चापलूस भी नहीं बनना चाहता
मुझे पसंद नहीं विस्फोटक ठहाके
मै दूर रहता हूँ पहले से तय फैसलों से

क्योंकि एक दिन गुजरा था मै भी लोगों के चहेते रास्ते से
और यह देखकर ठगा रह गया कि
मेरा पसंदीदा व्यक्ति बदल चुका था
बदल चुकी थी उसकी प्राथमिकताएँ
उसका नजरिया, उसके शब्द
उसका लिबास भी

लौट आया मैं चुपचाप
भरे मन से निराश होकर
तभी से अकेला ही अच्छा लगता है
अच्छा लगता है दूर रहना ऐसे लोगों से
जिन्होंने अपना बदनुमा चेहरा छिपाने को
लगा रखा है सुंदर सा मास्क
 


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